हरेला: हरियाली के नाम एक पर्व | Harela festival
Harela is an important festival of Kumaonis. Paan's residents have been
celebrating this festival with its deep cultural and religious connotations.
Non-residents with cultural roots intact celebrate Harela wherever
they live.
हरेला चैत्र, श्रावण और आश्विन मास में मनाया जाने वाला कुमाऊंनी पर्व है. चैत्र मास के प्रथम दिन इसे बोया जाता है तथा नवमी को
काटा जाता है. श्रावण मास का हरेला महीने के पहले दिन से नौ दिन पहले आषाढ़ में बोया
जाता है और दस दिन बाद श्रावण के प्रथम दिन काटा जाता है. आश्विन मास में इसे नवरात्रि के पहले दिन बोया जाता है और दशहरे के दिन काटा
जाता है.
हरेले के पहले दिन एक तख्ते या थाली के ऊपर पत्तों का दोना बनाकर उसपर मिटटी की पर्त लगाई जाती है, जिसके ऊपर 7 तरह के बीजों (गेहूं, जौ, मक्का,चना आदि) को छिड़क कर फिर मिटटी दाल दी जाती है. इसे देवताओं के स्थान के पास स्थापित किया जाता है. रोज इसे पानी दिया जाता है.
हरेला इस पर्व का नाम भी है और देवताओं के सामने पनपी फसल का भी जिसे 10 दिन बाद काट कर सिर पर रखा जाता है.
सुख-समृद्धि और अच्छी फसल के लिए मनाए जाने वाले इस पर्व के समापन के दिन सुबह-सुबह घर के बड़े-बुजुर्ग नित्य की पूजा के बाद हरेले को देवी-देवताओं को चढ़ाते हैं. फिर वो सभी के सिर पर हरेला रखते हैं. हरेला रखते समय वो एक सुन्दर आशीर्वचन करते हैं और पाँव, घुटने, कंधे से होते हुए हरेला सिर पर छोड़ते जाते हैं जब तक कि यह आशीर्वचन समाप्त नहीं हो जाता:
"लाग हरैला, लाग बग्वाली
जी रया, जाग रया
दुबक जस जड़ हैजो,
पात जस पौल हैजो,
अगास बराबर उच्च, धरती बराबर चौड़ है जया पात जस पौल हैजो,
स्यावक जैसी बुद्धि, स्योंक जस प्राण है जो
हिमाल म ह्युं छन तक, गंगज्यू म पाणि छन तक
यो दिन, यो मास भेटने रया."

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